खुदावंद की तारीफ़
तब्बसुर में तू है, निगाहों में तू है,
तेरा अक्स दिल में मेरे हूबहू है,
ज़माने में करता हूँ नाज़ तुझ पर
तेरा ज़िक्र दरियादिली ख़ूबखू है।
मेरे ओंठो पे हर घड़ी, मुंजी का नाम है,
उस्का ही जिक्र ह्रदये जुबां सुबहों शाम है,
खालिक है दो जहां का वो,मकदाये ज़िन्दगी,
दोनों जहाँ में एक वही आली मकाम है।
चांद सूरज सितारे देखे हैं
आसमां के नजारे देखे हैं,
इसी जमीं पे अजीब मकलूब
और कोख से बहते धारे देखे हैं,
क्यों ना मैं तारीफें हक़ बयाँ न करुँ ?
उसकी अज़मत में क्यों अयाँ न करूं ?
तेरा ही ज़िक्र अक़दस मुझसे मुदाम होगा,
मेरे लंबों पे हर दम तेरा ही नाम होगा,
बख्शी न बक्श देगा मुझको परोस मेहसद,
काम आ पड़ेगा जिस दम, रहमत से काम होगा।
क़ुर्बतों सब्र हिम्मत देगा तुम्हें वही,
गर है भरोसा तुम्हें उस पर हो लाख मायूसी,
मुरझा के रह तो जाती है इंसानी ज़िन्दगी,
लेकिन वचन खुदा का बदलता नहीं कभी।
तू दुखी मत हो, ना डर, हिम्मत रख।
आजमाईश की घड़ी में निगेवान होगा खुदा।
वो हक़ीक़त की नहीं करता तरकीब कभी,
जिसको मुंजी की मोहब्बत का पता होता है,
ख़ौफ़ करने की मुझे होती नहीं है आजत,
हर घड़ी साथ मेरे, मेरा खुदा होता है।
आँखे रहते हुए भी मैं या रब
तेरा ही आस्तान ना देख सका,
आ गया खुद मेरी तसल्ली को,
जब वो आहो खुफ़ा ना देख सका,
दीदारों दिल में भी उन्हें रख कर
मानता हूँ कि हाँ ना देख सका।
खुदा के पास जो आये हुए हैं,
खुशी से आज इतराये हुए हैं,
किसी शय का उन्हें कुछ डर नहीं है,
वो मुंजी पे यकीन लाये हुए हैं।
लोग करते हैं बात फूलों की,
हम परखते हैं जात फूलों की,
मालो-जऱ पर ग़ुरूर ठीक नहीं,
पल दो पल है हयात फूलों की।
तेरे घर में वही नज़र आये,
जिनमें देखी शिफात फूलों की।
जिंदगानी बख्शता है और देता है नजात,
हम्द और तारीफ़ के काबिल है वही एक जात,
है कलाम उसका, उसका यकीन करने के काबिल दोस्तो,
हम्द और नगमा की आओ सजाएं हम बारात।
खुदा अपने हर एक वंदे फरियादों को सुनता है,
हर आफत में मुहाफिज है, मुसीबत में बचाता है,
खुदा की जात पर पूरा यकीन है हमको ये इशरत,
खुदा है उसका हामी , प्यार उसे जो दिल से करता है।
फतह उसकी लाज़मी है
उस्की कुदरत वाकमाल,
जो मोहब्बत उससे रखते हैं,
ना होंगें वायमाल,
है खुदा हर दम मददगार अपने वंदों के लिए,
है मुहाफिज और बानी अम्ल का वो है
बेमिशाल।
ख़ुदाया हर घड़ी वंदों पे तेरी रहमत हो,
मुहाफ़िज़ हो तू ही उनका यही तेरी इनायत हो,
कहाँ इंसा में हिम्मत इतनी मुकाबिल जो तेरे आये,
भरोसा मेरा तुझ पर हो, तेरी कुब्बत से मोहब्बत हो।
बयाँ क्यों न करूं या रब
जहाँ में तेरी अजमत का।
कि जिससे कद्र है और मर्तवा भी आदमियत का।
तू ही खादिल खुदा है, फिक्र जो करता है इंसां की,
तेरी आला मोहब्बत है।
खुदा का राज़ है दोनों जहां में,
है क़ायम तख़्त उसका आसमा पर,
जमीं की कौमें और राजा भी इशरत,
करेंगे सज़दा उसके आस्तान पर।
है सच्ची बात हर घर का सरदार खुदा होता है,
खुदा का दख़ल ना होने से वह बेकार होता है,
कोई मुश्किल का हो जाये घर में ये इशरत,
चले अगर उसकी बातों में तो बेड़ा पार होता है।
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